Friday, May 11, 2007

Tying up loose ends

आज से १५० साल पहले स्वाधीनता के प्रथम संग्राम का आगाज हुआ था, और आज के दिन एक नयी तरह कि समाज व्यवस्था का अन्वेषण हुआ है। उत्तर प्रदेश विधान सभा २००७ के चुनावों के नतीजे काफी चौकाने वाले रहे, जहाँ मायावती कि बहुजन समाज पार्टी को संपूर्ण बहुमत मिल वहीँ भा जा पा का यह उत्तर प्रदेश में सब से निम्न प्रदर्शन रहा। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि मायावती की इस नयी सामाजिक व्यवस्था, जिसमे पीड़ित और पीड़ित करने वाले को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है, को मतदाताओं का पूर्ण समर्थन मिला। शायद भा जा पा का मूल मतदाता जो अब ब स पा के साथ होने कि वजह से ही आज वोह ५० तक आके टिक गयी। एक समय था जब उत्तर प्रदेश में भा जा पा लोक सभा में प्रदेश से लगभग सीटें जीती थी, किन्तु आज इस नयी सामाजिक वयवस्था ने सारे समीकरण बदल दिए।

ब स पा ने इस चुनाव me पुरानी अंग्रजी कहावत "Tying loose ends" से प्रेरणा ली और समाज के अगडे ब्राहमणों को दलितो के साथ ला कर एक अजेय चक्र का निर्माण किया। प्रदेश के जनता के जतिओं के प्रति अंध समर्पण को मायावती ने समझा और एक योजना बाना डाली, जिसकी सम्प्रन्गिता का शायद और किसी को अंदाज़ा भी ना था।

एक मह्ताव्पूर्ण प्रश्न यहाँ यह है कि यह व्यवस्था कितने दिनों के लिए रह पायेगी। यदि यह योजन सफल होती है तो शायद यह एक नए समाज के निर्माण में सहारा दे। परतु शायद यह सब उतने उंचे स्तर पर भी नही है, और लोगों ने बहुत ही निम्न मानसिकता के साथ अमे निर्वाचन के अधिकार का प्रयोग किया। शायद इस नयी समाजिक व्यवस्था के नए सदस्य इस बात से खुस थे कि ८७ ब्रह्मिन उम्मीदवार थे ब स पा के, लेकिन किसी ने यह नही सोचा कि इससे समाज और प्रदेश का कितना भला होगा। सबने बस शायद अपने स्वार्थ देखे, और एक ऐसी पार्टी को वोट दिए जिसने एक समय साड़ी सामजिक व्यवस्था को तोड़ा था और चुनाव टिकटों के लिए खुले आम पैसे लिए। हम क्या उम्मीद रख सकते हैं ऐसे उम्मिदारों से जिन्होंने २५ लाख रूपये मैं टिकेट ख़रीदा था।

शायद प्रदेश मैं कुछ आतंक घटेगा किन्तु प्रशाश्निक तंत्र के प्रति आतंक बढेगा। अज हमारो भावी मुख्यमंत्री को शालीनता कि व्याकरण भी नही पता है शायद। फिर से एक दौर पार्कों, अम्बेडकर ग्रामों, नए जिलों और विश्विद्यालयों के नाम बदलने का आयेगा। फिर से कोई बड़ा घोटाला और माया और उनके परिज़ानों के अज्ञात खतों का बोझ बढ जाएगा। मुलायम और अमर सिंह का भविष्य भी अगले पाँच सालों मैं क्या होगा यह भी एक पहेली है।

परंतु शायद कुछ ब्रह्मिनो को पुलिस सिपाही और क्लर्क कि नौकरियाँ मिल जायेगी। शायद ३ लाख कि बजाय दो लाख में लगेगी बोली सरकारी नौकरिओं और मिलेगा कुछ एक्स्ट्रा discount ब्रह्मिनो को। किसी ने माया से यह नही पूँछ के प्रदेश के आर्थिक व्यवस्था का क्या hoga, ना ही किसी ने यह पूंछा कि आज के आगे बढते हुए भारत में प्रदेश कब शामिल होगा।

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